दक्षिण-पूर्वी यूरोपीय देश रोमानिया में, यूरोपीय संघ की एक्सट्रीम लाइट इंफ्रास्ट्रक्चर (ELI) परियोजना के अंतर्गत आने वाले एक शोध केंद्र ने दुनिया का सबसे शक्तिशाली लेज़र विकसित किया है। लेज़र का संचालन फ्रांसीसी कंपनी थेल्स करती है। यह 2018 के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेताओं गेरार्ड मौरो (Gerard Mourou) और डोना स्ट्रिकलैंड (Donna Strickland) के क्रांतिकारी आविष्कारों पर आधारित है। शोध केंद्र रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट के पास स्थित है।
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लेजर कैसे काम करता है-
लेजर प्रौद्योगिकी को चिरप्ड-पल्स वृद्धि (CPA) तकनीक के रूप में जाना जाता है। चिरप्ड-पल्स वृद्धि (CPA) अत्यंत छोटे पल्सों को लंबा करके और विचार करके, अद्वितीय स्तरों की तीव्रता तक पहुँचाता है, जो विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए द्वार खोलता है, जैसे कि लेज़िक नेत्र शल्य चिकित्सा और औद्योगिक उपयोगों में अत्याधुनिक परिशुद्धता उपकरण।
लेजर का युग-
मौरो 21वीं सदी को लेज़र तकनीक के वर्चस्व वाले युग के रूप में देखते हैं, जो पिछली सदी में इलेक्ट्रॉन के महत्व के समान है। फीम्टोसेकेंड अवधि के लिए 10 पेटावाट की शिखर शक्ति तक पहुँचने की क्षमता के साथ, लेज़र विभिन्न क्षेत्रों में अपार संभावनाएँ रखता है।
लेज़र के अनुप्रयोग-
यह विभिन्न क्षेत्रों में क्रांतिकारी अनुप्रयोगों की संभावना रखता है, जिनमें स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण तक शामिल है। इसके अनुप्रयोग कैंसर के उपचार के लिए छोटे और किफायती कण त्वरकों से लेकर परमाणु कचरे के निपटारे और अंतरिक्ष मलबे की सफाई जैसी चुनौतियों का समाधान करने तक हैं।
निवेश और प्रयास-
इसे 320 मिलियन यूरो का भारी निवेश प्राप्त हुआ है, जिसे मुख्य रूप से यूरोपीय संघ द्वारा वित्त पोषित किया गया है। यह रोमानिया का अब तक का सबसे बड़ा वैज्ञानिक शोध प्रयास है। हालाँकि, फ्रांस, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अन्य राष्ट्र और भी अधिक शक्तिशाली लेज़रों के लिए वैश्विक खोज में लगे हुए हैं।
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