महर्षि पिंगला

लगभग दूसरी या तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में, महर्षि पिंगला ने ‘मात्रमेरु’ में कुछ संख्याओं का वर्णन किया था। ये ही वे नंबर हैं जिनके बारे में हम आज बात करेंगे तथा यह वही पिंगला हैं जिन्होंने बाइनरी नंबर सिस्टम का वर्णन करने वाली पहली पुस्तक ‘छंदशास्त्र’ की रचना की थी।

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लगभग 1202 ई. में, इटली के एक गणितज्ञ फिबोनाची ने “लिबर अबाकि(Liber Abaci)” नामक एक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने ‘मात्रमेरु’ में वर्णित समान संख्याओं के साथ फिबोनाची अनुक्रम(Fibonacci sequence) पेश किया।

0, 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21……

इस क्रम में, प्रत्येक संख्या(0 और 1 को छोड़कर) दो पूर्ववर्ती संख्याओं का योग है। जैसे 1+1=2, 1+2=3, 2+3=5, 3+5=8, 5+8= 13 इत्यादि। इस अनुक्रम में कई आकर्षक गणितीय गुण हैं और यह अनुक्रम प्रकृति, कला और विज्ञान के विभिन्न पहलुओं में पाया जाता है। इस क्रम का उपयोग हमें अनेक स्थानो पर दिखाई देता है- पेड़ों की शाखाएँ, अनानास, शंख, चक्रवात, मकड़ी का जाला, आकाशगंगाएँ इत्यादि।

जैसा कि हम जानते हैं, भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं। ज्योति का अर्थ है ‘चमक’ और लिंगम का अर्थ है ‘भगवान शिव की छवि या चिन्ह’। इस प्रकार ज्योतिर्लिंगम का अर्थ है ‘सर्वशक्तिमान शिव का दीप्तिमान चिन्ह’।

यदि हम इन ज्योतिर्लिंगों को एक रेखा से जोड़ते हैं, तो हम पाते हैं कि यह भी फिबोनाची अनुक्रम के ग्राफ की तरह एक ज्यामितीय आकृति बनाता है। इसका मतलब यह है कि यह विशेष पैटर्न भारत में प्राचीन काल से ही उपलब्ध है। ये ज्योतिर्लिंग इस ज्यामितीय आकृति में क्यों हैं? शायद ऊर्जा का प्रवाह इसका मुख्य कारण है। जब हम भारत के सौर विकिरण मानचित्र का अवलोकन करते हैं, तो हम पाते हैं कि ज्योतिर्लिंगों की स्थिति ऐसी है मानो वे एक दूसरे को (ऊर्जा प्रवाह के पैटर्न में) ऊर्जा दे रहे हों।

संभव है कि इस घटना के और भी कई रहस्य हों जो हम अभी तक न जानते हों।